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shiv ke कानासर गांव की बेटी के संघर्ष की कहानी

शिव के कानासर गांव की बेटी के संघर्ष की कहानी:स्कूल से लौटते ही बकरियां चराने जाती, शाम को दो घंटे लड़कों के साथ खेलती, नौ साल खेतों में अभ्यास करके क्रिकेटर बन गई अनीसा

Anissa Mehr
Anissa Mehr 


बाड़मेर

Anissa Mehr खिलाड़ी, महिला क्रिकेट टीम, राजस्थान।

गांव की सरकारी स्कूल में पढ़ाई के दौरान वर्ष 2013 में मेरे घर पर पहली बार टीवी आई। क्रिकेट मैच देखते हुए मन में ख्याल आया कि क्या मैं भी क्रिकेटर बन सकती हूं। यह बात किसी को बताई नहीं और सात साल की उम्र में ही बच्चों के साथ खेलना शुरू किया। सुबह तीन किमी दूर कानासर गांव की सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए जाती और वापस लौटकर बकरियां चराने चली जाती।

शाम को दो घंटे का समय आराम के लिए मिलता था उस दौरान मैं बच्चों के साथ खेलने लग जाती थी। बच्चों के साथ मेरा खेलना रिश्तेदारों व आस-पड़ोस के लोगों को अच्छा नहीं लगता था। इसलिए मेरे पिताजी को कई बार लोगों ने उलाहना दी कि आपकी बेटी गांव के लड़कों के साथ क्यों खेल रही है। यह बात मुझे मन ही मन में तकलीफ दे रही थी, लेकिन कुछ कहने की बजाय चुपचाप सुनती रही और खेलना जारी रखा।

क्रिकेट का जुनून ऐसा था कि खेलना मेरी आदत में शुमार हो गया। इस दौरान रोशन खां कोट ने मुझे मोटिवेट करते हुए कहा कि तेरे अंदर क्रिकेट का जुनून है और तुम अच्छी खिलाड़ी बन सकती हो। उस शख्स की प्रेरणा के बाद लगातार क्रिकेट का अभ्यास जारी रखा। परिवार व नजदीकी लोगों में किसी को मेरे पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये लड़की कुछ कर पाएगी।

उस दिन से जिद्दी शुरू कि क्रिकेट में भविष्य बनाकर इन लोगों को चुप करवाना है। फिर क्रिकेट के अभ्यास में पूरी ताकत झोंक दी। गांव में खेल मैदान न संसाधान थे। साथ में खेलने के लिए कोई बच्ची भी नहीं। इस स्थिति में लड़कों के साथ खेलने का सिलसिला जारी रखा। पांच साल की मेहनत के बाद राजस्थान महिला क्रिकेट टीम 19 में चयन होना मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं है।

लोगों के तानों से निराश होकर खेलना बंद किया, बेटियां किसी से कम नहीं, जुनून(hindi story)

गांव में रोजाना लड़कों के बीच मैं अकेली लड़की खेलती थी। यह बात हर किसी को अखर रही थी। क्योंकि गांवों का माहौल शहरों के मुकाबले अलग है। बेटे व बेटी को लेकर सोच अलग थी। लोगों के तानों से तंग आकर एक बार क्रिकेट खेलना ही बंद कर दिया। फिर सोचा कि इन लोगों की वजह से मेरी इतने साल की मेहनत पर पानी फिर जाएगा।

फिर हिम्मत जुटाई और लोगों की बातों को अनसुना कर खेलना जारी रखा। बाड़मेर-जैसलमेर के ग्रामीण परिवेश में आज भी बेटियों को बेटों के मुकाबले पढ़ाई व खेलों में तव्वजो नहीं मिलती है। लेकिन बेटियां किसी से कम नहीं है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मैं हूं। जब मेरे जैसी सामान्य परिवार की लड़की विकट हालातों से जूझते हुए राजस्थान की महिला क्रिकेट टीम तक पहुंच सकती है तो दूसरी बेटियां क्यों नहीं। बस इसके लिए जुनून होना जरूरी है। मेहनत के साथ मैदान में डट जाए सफलता अवश्य मिलेगी।

(जैसा राजस्थान महिला क्रिकेट टी 19 में चयनित अनीसा मेहर ने भास्कर के डिप्टी न्यूज एडिटर पूनमसिंह राठौड़ को बताया)


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