राठौड़ वंश की कुलदेवी मां नागणेच्यां:2012 में देश पर संकट की आशंका थी, वैष्णों देवी के बाद नागणेच्यां मंदिर में हुआ था बड़ा यज्ञ, सरहद पर हवन अवशेष डाल की मंगल कामना
Nagneshi Mata |
नागाणा धाम स्थित नागणेच्यां माता मंदिर वर्षों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।(nagneshi Mata)6
Nagneshi Mata Mandir |
नागाणा धाम स्थित नागणेच्यां माता मंदिर वर्षों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। राठौड़ वंश की कुलदेवी नागणेची माता मंदिर में अब तक काफी विकास कार्य हो चुके हैं। मंदिर के प्राचीन इतिहास की बात की जाए तो राव धुहड़ जी माताजी को पालकी में बैठाकर खेड़ की तरफ जा रहे थे। इस दरम्यान नागाणा गांव के पास गाय को मारने हमलावर आ गए।
उस पालकी को पहाड़ी पर रखकर राव धुहड़ जी गायों को बचाने के लिए युद्ध करने लग गए तथा उन्होंने प्राण त्याग दिए। उसी वक्त मां की पालकी पहाड़ के अंदर समायोजित हुई। इसके बाद नागणेच्यां माता मंदिर का निर्माण हुआ जो आज भी आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां राजस्थान भर व बाहरी प्रदेशों, विदेशों से भक्तगण पहुंचते हैं। 2007 में नागणेच्यां माता मंदिर ट्रस्ट बनाया गया। अध्यक्ष पूर्व महाराजा गजसिंह के नेतृत्व में समिति गठित हुआ। इसके बाद यहां पर भव्य मंदिर बन चुका है।
क्या हुआ था 2012 को, क्यों करना पड़ा नागणेच्यां मंदिर में विशाल हवन(nagneshi Mata)
मंदिर प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष व कल्याणपुर प्रधान उम्मेदसिंह अराबा बताते हैं कि वर्ष 2012 में किसी संत ने भारत पर संकट आने पर हवन करवाने का आह्वान किया। इस पर वैष्णो देवी मंदिर में हवन किया गया, लेकिन सफल नहीं हो सका। संत का कहना था कि भारत में कहीं पर नागणेची माता का मंदिर हो तो वहां हवन किया जाए। इसलिए यहां हवन आयोजन किया गया।
जोधपुर पूर्व नरेश गजसिंह ने हवन के लिए अनुमति दी। उस समय तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर प्रभा टांक ने पूरी मॉनिटरिंग की। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि हवन कुंड से निकली अग्नि में मां का चित्र भी देखने को मिला। इसके बाद हवन सफल हो सका। हवन की राख को देश की सीमाओं पर डालकर रक्षा करने व विश्व शांति की कामना की गई।
वर्ष 2000 के बाद मंदिर में शराब व पशु बलि प्रतिबंध
सन् 2000 में नागणेच्यां माता मंदिर पर पूर्ण रूप से शराब व पशु बलि को बंद कर दिया गया, क्योंकि यहां पर ब्राह्मणी माता के रूप में पूजा की जाती थी। इसके बाद से नागाणा धाम आस्था का केंद्र तक बन गया। मंदिर में धीरे-धीरे विकास भी होने लगा। बाहरी प्रदेशों व विदेशों से भी श्रद्धालु यहां मां के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
मंदिर परिसर में एक करोड़ की लागत से हवन कुंड बना
मंदिर में अब तक 36 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए है। एक करोड़ लागत से हवन कुंड का निर्माण भी चल रहा है। साथ ही चार करोड़ से भोजनशाला व धर्मशाला भी बनाई गई है। 100 कमरों की प्रस्तावित धर्मशाला का भी निर्माण चल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की घोषणा पर देवस्थान विभाग ने 5 करोड़ रुपए पार्किंग, धर्मशाला, सुलभ कॉम्पलेक्स पर खर्च किए। पर्यटन विभाग ने यहां तीन करोड़ के विकास कार्य करवाए हैं।