Rajasthan की सबसे रहस्यमयी जगह की दुर्लभ तस्वीरें:जहां भगवान वामन के पहला कदम रखने की मान्यता, वहां मिली दुर्लभ प्रतिमा, जो बन सकती है इतिहास
बांसवाड़ा में प्रयाग के नाम से प्रसिद्ध बेणेश्वर धाम के साथ कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। माना जाता है कि यहां का आबूदर्रा कई रहस्य समेटे हुए है। इसके बारे में जानने के लिए स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (SDRF) के जवानों के साथ मिलकर 70 फीट गहराई में 2 दिन तक गुफा और चट्टानों के बीच सर्च अभियान चलाया। इसमें जो तस्वीरें सामने आई वो चौंकाने वाली थीं।
पहली तस्वीर संत मावजी की है और दूसरी भास्कर के सर्च अभियान के दौरान पानी के अंदर क्लिक की गई है।
भास्कर के 2 रिपोर्टर और एक फोटोग्राफर ने SDRF के जवानों के साथ मिलकर स्कूबा डाइविंग की और ऐसी तस्वीरों को ढूंढा जो आपने पहले कभी नहीं देखी होंगी। पहली बार संगम स्थल की तलहटी से तस्वीरें सामने आई हैं। इतनी गहराई में संत मावजी जैसी प्रतिमा, शिवलिंग और कई पौराणिक स्ट्रक्चर देखकर टीम भी चौंक गई। मान्यताओं के मुताबिक आबूदर्रा राजा बली की यज्ञ भूमि है। भगवान ने जहां पहला पग रखा था। इसके अंदर संत मावजी का एक महल है, जाे उनका निज धाम है।
सर्च अभियान के लिए SDRF के 27 जवानों की टीम पहुंची तो को लगा कोई डूब गया है।थाेड़ी ही देर में घाट पर मजमा लग गया। जब लोगों को पता चला कि दैनिक भास्कर की तरफ से पानी के अंदर खोज कराई जा रही है ताे सभी ने इसे इसकी सराहना की।
कैमरा ढूंढने गोताखोर को दोबारा पानी में उतरना पड़ा
सर्च ऑपरेशन में लगे गोताखोर के साथ एक अजीब घटना घटी। गोताखोर ने एक कैमरा अपने हाथ में ले रखा था, जबकि दूसरा सिर पर फिट था। तस्वीरें क्लिक करने के बाद जब वह लौटा ताे सिर पर लगा कैमरा गायब था। गोताखोर ने दोबारा गोता लगाने का विचार किया, लेकिन पता चला कि ऑक्सीजन कम है। फिर बांसवाड़ा से सिलेंडर री-फिल हाेने के बाद गोताखोर रमेशचंद्र ने गोता लगाया और तीसरी बार कोशिश करने पर कैमरा मिल सका। दाे दिन तक चले सर्च ऑपरेशन में गोताखोर ने 5 घंटे से ज्यादा समय पानी में बिताया।
भास्कर के सर्च अभियान के बाद बेणेश्वर धाम के पौराणिक महत्व का दावा और मजबूत हो गया है। नदी के अंदर क्लिक की गई यह फोटो हूबहू संत मावजी जैसी दिखने वाली प्रतिमा की है।
गोताखोर ने भी पहले नहीं देखी ऐसी रहस्यमयी जगह
सर्चिंग करने वाले SDRF के गोताखोर रमेशचंद्र ने बताया कि यहां सभी हिस्सों की गहराई अलग-अलग है। कहीं 10 फीट ताे कहीं 20 फीट। किसी-किसी जगह 30 से 50 फीट और इससे भी ज्यादा। उन्होंने बताया कि 26 सालाें में 900 के करीब शव, वाहन और मूर्तियां तलाश चुका हूं, लेकिन आबूदर्रा जैसी रहस्यमयी जगह पहली बार देखी है। मैं इसे रहस्यमयी इसलिए कह रहा हूं क्योंकि, इसमें हर गोते में नया मंजर दिखाई देता था।
ये ठीक वैसी ही प्रतिमा है, जैसी मावजी महाराज के भित्ति चित्र में दिखाई गई है। पानी के अंदर सर्च ऑपरेशन चलाते वक्त गोताखोरों को ऐसी कई प्रतिमा नजर आईं।
बेणेश्वर धाम और आबूदर्रा ही क्यों ?
- बेणेश्वर धाम काे बैण वृंदावन धाम के नाम से भी जाना जाता है, जहां संत मावजी महाराज ने योग साधना की। राजस्थान सरकार के अंग्रेजी में प्रकाशित गजेटियर (सन् 1974) में भी इसका प्रमाण है।
- यहां माघ पूर्णिमा पर मेला भरता है। इसमें लाखों भक्त शामिल होते हैं। यह आदिवासियों के कुंभ के नाम से भी जाना जाता है।
- त्रिवेणी संगम पर अस्थि विसर्जन की भी परंपरा रही है। इस लिहाज से यहां काफी पूजन कार्य होते हैं।
धाम पर सोम, माही और जाखम नदियों का संगम स्थल है। यह त्रिवेणी संगम के नाम भी जाना जाता है। संगम स्थल पर अलग-अलग घाट बने हुए हैं। इनमें से एक घाट आबूदर्रा नाम से जाना जाता है। इसके नजदीक राधा कुंड है।
इन रहस्यमयी मूर्तियों की सुध कई सालों से किसी ने नहीं ली है। पानी में लगातार पड़ी रहने के कारण इन पर काई की मोटी परत चढ़ गई है।
पौराणिक तस्वीरों को भास्कर के पाठकों के सामने लाने के लिए गोताखोर को 40 बार गोते लगाने पड़े। तब कहीं जाकर ये तस्वीरें क्लिक की जा सकीं।
संगम स्थल का धार्मिक महत्व काफी ज्यादा है। यहां गोताखोर को भगवान शंकर के शिविलिंग जैसी प्रतिमाएं भी नजर आई।
दाे दिन तक चले सर्च ऑपरेशन में गोताखोर ने को कई घंटे पानी में बिताने पड़े।
वीडियो और फोटो: भरत कंसारा