नागौर जगत में नाम कर गए 'जगत मामा', कुंवारे रहकर 300 बीघा जमीन गांव की स्कुल, ट्रस्ट व गोशाला के नाम कर दी दान
Gold tr news
नागौर/जायल। एक इंसान, जिसने शिक्षा और मानवीयता को जीवन समर्पित कर दिया और अपना सब कुछ शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए न्योछावर कर दिया। जवीनभर सरकारी स्कूलों में जाकर बच्चों को नकद ईनाम के साथ शिक्षण सामग्री बांटी तथा जब मन किया तो बच्चों को हलवा-पूरी बनवाकर भी खिलाई। ये इंसान जायल के राजोद गांव निवासी पूर्णाराम छोड़ थे, जो गुरुवार को 90 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को छोड़ गए। 'जगत मामा' के नाम से विशेष पहचान बनाने वाले इस इंसान ने क्षेत्रवासियों के दिलों में अपना नाम कर दिया।
उन्हें पैसा बांटने की धुन सी थी, सिर पर दुधिया रंग का साफा, खाकी रंग में फटी सी धोती, खाक में नोटों से भरा थैला दबाए 'जगत मामा' जब लाठी के सहारे चलते थे, तो बहुत ही साधारण साधु जैसे लगते थे, लेकिन वे दिल व सोच के बहुत अमीर व प्यार के सागर से भरे इंसान थे। गुरुवार को उनके देहांत के साथ सोशल मीडिया पर हर किसी ने उनको न केवल श्रध्दांजलि दी, बल्कि उनके द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में दिए गए योगदान को बताते हुए सरकार एवं जनप्रतिनिधियों से उनका पाठ पाठ्यक्रम में शामिल कराने तथा जायल कॉलेज का नाम उनके नाम से करने की मांग भी कर डाली।
भाणियो कहकर बुलाते थे, इसलिए कहलाए जगत मामा वर्तमान में विभिन्न सरकारी निजी पदों पर आसिन हजारों लोगों ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर बताया कि 'जगत मामा ' ने उन्हें ईनाम दिया, किसी ने कहा कि उसे हलवा खिलाया। उनके सम्पर्क में आए लोगों ने बताया कि पूर्णाराम बच्चों को 'भाणू' या 'भाणियो' कहकर ही संबोधित करते थे, इसलिए उन्हें सब 'जगत मामा' कहते थे। 'जगत मामा' कोई पढ़े-लिखे इंसान नहीं नहीं थे, एक अनपढ़ इंसान होने के बावजूद उनकी दूरदर्शिता ने उन्हें एक शिक्षा संत की पहचान दी। ग्रामीण हरिराम रेवाड़ ने बताया कि पूर्णाराम वर्षों पूर्व घर परिवार त्याग कर शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
सबकुछ कर दिया दान पूर्णाराम के सम्पर्क में लोगों ने बताया कि वे कभी-कभी स्कूली खेलकूद प्रतियोगिता में हलवा -पूरी बंटवा देते थे। वरिष्ठ अध्यापक गोरधनराम रेवाड़ ने बताया कि पूर्णाराम रोजाना विभिन्न स्कूलों में पहुंचकर बच्चों को उपहार बांटते थे। उन्होंने प्रवेश फीस से लेकर किताबें, स्टेशनरी, बैग व छात्रवृति तक की व्यवस्था कर अब तक हजारों लड़कों को स्कूल से जोड़ा था। गांव-गांव स्कूलों में फिरते रहने के कारण उन्होंने शादी भी नहीं की और अपनी 300 बीघा जमीन भी गांव की स्कूल, ट्रस्ट व गोशाला को ही दान दे दी।
By TILOK Patel