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Delhi Singhu Border से अब MSP की गारंटी दे दें, हम घर लौट जाएंगे

Singhu Border पर अब किसानों की संख्या पहले के मुकाबले काफी कम हो गई है। कई किसान खेती बाड़ी के लिए घर गए हुए हैं।


Singhu Border से रिपोर्ट:किसान बोले- शुक्र है Modi को हमारी बात तो समझ आई; अब MSP की गारंटी दे दें, हम घर लौट जाएंगे

काबिल सिंह ने खुद को बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। हाथ-पैर लोहे की जंजीर में बंधे हैं। कमर से बेड़ियां लटक रही हैं। बीते एक साल से वे ऐसे ही बेड़ियों में कैद हैं। काबिल सिंह को खुशी है कि अब वो आजाद हो सकेंगे। Delhi के सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन में शामिल काबिल सिंह ने केंद्र सरकार के तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ रोष प्रकट करते हुए अपने आप को बेड़ियों में कैद कर लिया था। उन्होंने कसम खाई थी कि जब तक तीन कानून वापस नहीं होंगे वो अपनी बेड़ियां नहीं खोलेंगे।

काबिल सिंह कहते हैं, 'पिछले एक साल में मैंने कभी मोदी या सरकार के लिए कुछ नहीं कहा। अब मैं मोदी का शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्हें हमारी बात समझ आ गई। हमें उम्मीद है कि वो MSP पर भी हमारी बात मानेंगे और ये आंदोलन समाप्त हो जाएगा।' वे चाहते हैं कि जब किसान आंदोलन समाप्त हो तो वो मंच पर जाकर किसान नेताओं की मौजूदगी में अपने आप को इस कैद से आजाद करें।

अब ऐसा लग रहा है कि किसान आंदोलन अपने अंजाम पर पहुंच रहा है और Delhi की सरहदों से किसान अपने तंबु उठा लेंगे, लेकिन बीता एक साल आंदोलनकारी किसानों पर बहुत भारी गुजरा है। इस दौरान काबिल सिंह की 21 साल की बेटी की बीमारी से मौत हो गई, बूढ़े पिता चल बसे और कुछ दिन पहले मां भी गुजर गईं, लेकिन काबिल सिंह ने अपनी बेड़ियां नहीं खोलीं।

काबिल कहते हैं, 'मेरी ये बेड़ियां आजाद भारत में किसानों की गुलामी की प्रतीक हैं। भारत भले ही आजाद हो गया, लेकिन किसान गुलाम हैं। जब तक किसान आजाद नहीं होगा, आगे नहीं बढ़ेगा देश भी आगे नहीं बढ़ सकता।'


ये लड़ाई हमें बहुत महंगी पड़ी है

Singhu Border पर अब किसानों की संख्या पहले के मुकाबले काफी कम हो गई है। कई किसान खेती बाड़ी के लिए घर गए हुए हैं।

Bharat के prime Minister  Narendra Modi ने शुक्रवार को देश को संबोधित करते हुए तीन विवादित कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की थी। Prime Minister के इस अचानक लिए फैसले ने किसान आंदोलन के समाप्त होने का रास्ता साफ कर दिया है, लेकिन किसानों को इससे बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ है। काबिल सिंह कहते हैं, बीते एक साल में हमारा बहुत खर्चा और नुकसान हुआ है। किसान अपना सब कुछ छोड़कर मोर्चे पर बैठे थे। यहां का खर्चा वो खुद उठा रहे थे।


काबिल कहते हैं, 'मेरे पास ढाई एकड़ जमीन है। खर्चे पूरे करने के लिए मुझे कर्ज लेना पड़ा। अब मेरी डेढ़ एकड़ जमीन गिरवी रखी है। ये लड़ाई हमें बहुत महंगी पड़ी है।'

सिंघु बॉर्डर पर किसानों के तंबू पहले से बड़े हैं, लेकिन भीड़ पहले जैसी नहीं हैं। किसानों ने यहां स्थाई ठिकाने बना लिए हैं और कई जगह तो कैंपों में दरवाजे भी लगे हैं। कई आंदोलनकारी किसान अपने तंबुओं पर ताला लगाकर अपने काम करने के लिए पंजाब गए हुए हैं।

यहां मौजूद किसानों को इस बात की खुशी तो है कि सरकार ने उनकी सबसे बड़ी मांग मान ली है, लेकिन अभी वे अपना आंदोलन समाप्त करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। संयुक्त किसान मोर्चा ने भी कानूनों को संसद में रद्द किए जाने तक आंदोलन चलाए रखने का फैसला लिया है। आंदोलन का आगे स्वरूप क्या होगा इसे लेकर 27 नवंबर को किसान मोर्चा की बैठक है।


घर से कसम खाकर निकला था कि कानून रद्द करवाकर ही वापस जाऊंगा

रोपड़ से आए रुपिंदर सिंह कहते हैं, 'सरकार के फैसले से हम संतुष्ट हैं। अब सरकार MSP का अधिकार दे देगी तो हम लौट जाएंगे।' वे कहते हैं कि मैं पिछले एक साल से यहीं हूं। कभी घर नहीं गया। बीमार हो गया था तब भी मैं यहीं रहा। मैं घर से कसम खाकर निकला था कि कानून रद्द करवाकर ही वापस जाऊंगा। अब आंदोलन समाप्त होगा तब ही मैं लौटूंगा। मेरा परिवार भी मेरे साथ खड़ा रहा। मेरे बच्चे यहां मिलने आते थे।

रोपड़ से आए रुपिंदर सिंह का कहना है कि हम सरकार के फैसले से हम संतुष्ट हैं। सरकार MSP का अधिकार दे देगी तो हम लौट जाएंगे।


वे कहते हैं, 'अब मैं अपनी आने वाली पीढ़ी को बता सकूंगा कि मैंने उनके लिए क्या किया। हमारी आने वाली पुश्तें याद करेंगी कि हमारे दादा हमारे अधिकारों के लिए ऐसे सर्दी-गर्मी में बैठे रहे।'


वहीं Fatehgarh साहिब से आए भूपिंदर सिंह कहते हैं, 'हम कानून रद्द करने के लिए सरकार का धन्यवाद करते हैं। किसानों ने सर्दी, गर्मी, बरसात सड़कों पर बिताई, अब जितनी जल्दी सरकार सभी मसले हल कर देगी, उतनी जल्दी हम घर लौट जाएंगे।

वे कहते हैं कि government को पता था कि ये कानून गलत हैं फिर वो हमें समझाने में लगे रहे। पूरा साल सरकार ने ऐसे ही निकाल दिया। सरकार को ये कानून बनाने से पहले ही किसानों से राय लेनी चाहिए थी। किसानों के लिए जो भी कानून बनें वो किसानों को भरोसे में लेकर ही बनाया जाए।

भूपिंदर कहते हैं, 'सरकार ने इस मोर्चे को खत्म करने के बहुत जतन किए, लेकिन नाकाम रही। कभी किसानों को आतंकवादी कहा, कभी नक्सल और khalistani कहा। किसान डटे रहे। हमें नाली के कीड़े तक बोल दिया गया, लेकिन हमारे नेता इस धरने को शांतिपूर्वक चलाए रहे। शांति और सब्र ने ही इस धरने को कामयाब किया है। हमारे नेता हमेशा कहते थे कि चाहें जो भी हो हम शांतिपूर्ण धरना जारी रखेंगे।

केंद्रीय कानूनों के खिलाफ सबसे पहले विरोध Punjab में शुरू हुआ था। दिल्ली कूच करने से पहले Punjab की किसान जत्थेबंदियों (संगठनों) ने Punjab में जमीनी स्तर पर आंदोलन चलाया था और कृषि कानूनों का विरोध किया था। तब वो सरकार को कानून पारित करने से नहीं रोक सके थे।

इसके बाद किसान संगठनों ने Delhi कूच का फैसला किया और 26 नवंबर को किसान दिल्ली की सरहदों पर पहुंच गए। Haryana government ने किसानों को रोकने की हर संभव कोशिश की। रास्ते में सड़कें तक खोद दी गईं, लेकिन किसान सभी बाधाओं को लांघकर Delhi पहुंचे और वहीं अपने तंबू गाड़ दिए।


फतेहगढ़ साहिब से आए भूपिंदर सिंह कहते हैं कि सरकार ने इस मोर्चे को खत्म करने के लिए कई जतन किए हैं, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली।


धीरे-धीरे दिल्ली की सरहदों पर किसानों के काफिले बढ़ते गए। तंबू स्थाई ठिकानों में बदल गए। ट्रालियां ने घरों का रूप ले लिया। हरियाणा के किसान भी आंदोलन में शामिल हो गए। पीछे से राशन-पानी आता रहा और किसानों का आंदोलन चलता रहा। धीरे-धीरे UP के किसान भी आंदोलन में शामिल होते गए और गाजीपुर बॉर्डर भी आंदोलन का केंद्र बन गया। भूपिंदर सिंह कहते हैं, "हमें पूरे देश के किसानों का सहयोग मिला। आंदोलन सिर्फ UP ही नहीं ओडिशा तक भी पहुंच गया।'


किसान कहते हैं- टिकैत की एक आवाज पर UP के किसान खड़े हो जाते हैं

किसान आंदोलन में UP के किसान नेता  की भूमिका को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं, लेकिन Singhu Border पर मौजूद किसानों को उन पर पूरा भरोसा है। यहां मौजूद किसान कहते हैं, 'हमें टिकैत साहब पर भरोसा करने में समय लगा, लेकिन उन्होंने पूरे आंदोलन को थाम लिया। उन्होंने ऐसे समय आंदोलन में जान फूंकी जब सबसे ज्यादा जरूरत थी। उन्होंने आंदोलन को Punjab से निकालकर UP और फिर देश में पहुंचा दिया। उनकी एक आवाज पर UP के किसान खड़े हो जाते हैं।'

Singhu Border संख्या भले किसानों की कम हुई है, लेकिन स्थाई ठिकाने अभी भी बरकरार हैं। हर मौसम के लिए किसान पूरी तरह तैयार हैं।

आंदोलन बड़ा तो किसानों के मुद्दे भी बढ़ते गए। तीन कृषि कानूनों के विरोध से शुरू हुआ आंदोलन में अब MSP (फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य), बिजली बिल की कटौती और पराली से प्रदूषण का मुद्दा भी अहम हो गया है। किसान अब आंदोलन में मारे गए किसानों के परिवार को राहत देने और आंदोलनस्थल पर स्मारक बनाने की मांग भी कर रहे हैं। किसान चाहते हैं कि Singu border पर आंदोलन की याद में स्मारक बनाया जाए। सरकार कानूनों से तो पीछे हट रही है, लेकिन MSP का अधिकार देना आसान नहीं होगा।


Prime Minister Narendra Modi बार-बार ये कहते रहे थे कि उनकी सरकार तीन कानूनों को वापस नहीं लेगी। अब अचानक उनके पीछे हटने के राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं। ऐसे में क्या अब BJP को फायदा हो सकता है, इस पर भूपिंदर सिंह कहते हैं, 'BJP का जो नुकसान होना था हो चुका है। अब चुनावों में बहुत कम समय में है, ऐसे में BJP बहुत कुछ नहीं कर सकेगी। अधिक से अधिक वो प्रचार कर लेगी।'

वहीं किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां कहते हैं, 'BJP के लिए बंद रास्ते तो खुल ही जाएंगे। BJP अब पंजाब में अपना प्रचार करेगी तो किसान उसका विरोध नहीं करेंगे।'

क्या आंदोलन में आगामी चुनावों को लेकर भी कोई चर्चा हुई है। इस पर किसान नेता राजिंद्र सिंह दीपसिंहवाला कहते हैं कि चुनावों में आंदोलन की भूमिका तो रहेगी ही। आंदोलन ने चुनावों को प्रभावित भी किया है। आगामी चुनावों में आंदोलन का क्या स्टैंड होगा, इस पर चर्चा अभी होनी है।


रविवार को Singu border पर किसान संगठनों की बैठक हुई जिसमें तीन कानूनों के संसद से रद्द होने तक आंदोलन को चलाए रखने का फैसला लिया गया है। आंदोलन का आगे स्वरूप क्या होगा इसे लेकर अब 27 नवंबर को किसान संगठनों की बैठक होनी है। हालांकि Punjab की किसान जत्थेबंदियां अब आंदोलन को Delhi की सीमाएं से समाप्त करने के मूड में हैं।

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