बात बराबरी की:ladakee 21 की हो या 40 की, उसके प्रेम पर परिवार ऐसे भड़कता है; जैसे प्यार न हो, देशद्रोह का सुराग मिल गया हो
नई दिल्ली
9 साल पहले का दिसंबर महीना लगभग हर साल शहर-ए-देहली को डरा जाता है। ये वही वक्त है, जब निर्भया की चीखों के बीच दिल्ली वेलवेटी रजाइयों में दुबकी हुई थी। चीखती हुई बच्ची की सांसें थमने के साथ ही वो झटके से जाग उठी। रजाइयां फेंककर इंसाफ और बराबरी के जयकारे बुलंद किए जाने लगे। एक ‘बीत चुकी बच्ची’ के लिए इंसाफ का तो पता नहीं, लेकिन कानून जरूर बराबरी की तरफ नन्हे-गुदगुदे कदम बढ़ा रहा है।
ऐसा ही एक कदम है ladakiyon की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल कर देना, लेकिन क्या सिर्फ शादी की उम्र समान होने से स्त्री-पुरुष के बीच का फासला पट सकेगा! नहीं। बराबरी नाम के मुल्क तक पहुंचने के लिए अभी हमें सात समंदर और चौदह पहाड़ पार करने होंगे।
कल्पना कीजिए कि 21 साल या उससे ऊपर की एक ladakee दूसरी जाति या मजहब में प्रेम करती है। ये जोड़ा शादी के लिए परिवार की इजाजत चाहता है। परिवार मामूली जांच-पड़ताल के बाद शादी को हरी झंडी दे देता है। दोनों पक्ष खुशी-खुशी हल्दी-चंदन करते हैं। लड्डुओं के बीच खुशगप्पियां चलती हैं और जस्ट मैरिड की सजीली कार में बैठकर दुल्हन की रंगारंग बिदाई हो जाती है। ये तो हुई आदर्श स्थिति।
लड़कियों के मामले में हर घर की नाक मक्खन-सी मुलायम हो जाती है
दूसरी स्थिति एकदम अलग है। यहां ladakee के प्रेम की बात सुनते ही परिवार ऐसे भड़कता है, जैसे प्यार न हो, देशद्रोह का सुराग मिल गया हो। कूटम-कुटाई के बाद लड़की को कमरे में बंद कर पूरा परिवार योग्य वर की खोज में जुट जाता है। लड़का शराब की कुल्लियां करता हो, नाकारा हो या आवारा, सब चलेगा, बस किसी तरह से अपनी नाक कटने से बच जाए। लड़की के मामले में कमोबेश हर हिंदुस्तानी घर की नाक मक्खन-सी मुलायम हो जाती है। जरा आंच लगी नहीं कि पिघलकर टपाक से जमीन पर पसर जाएगी।
महीने की शुरुआत में महाराष्ट्र के औरंगाबाद से ऐसी ही एक घटना सुनाई पड़ी। वहां गैर-जाति में शादी के कारण लड़की को खुद उसके भाई ने गला काटकर मार दिया। हत्या ही काफी नहीं थी। परिवार की खोई इज्जत लौटाने के लिए 17 साल के भाई ने बहन के कटे हुए सिर के साथ सेल्फी ली और फिर नुमाइश के लिए उसे घर की देहरी पर रख दिया। ये शौर्य का आजमाया हुआ रूप था। ladakee की बेजान देह परिवार के सीने पर सोने के तमगे की तरह चमक उठी।
इस तरह की घटनाएं इतनी आम हैं कि खुद नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो इसके डेटा पर उलझा रहता है। ब्यूरो अपनी रिपोर्ट में ये भी जोड़ता है कि हत्या के बाद परिवारवाले अक्सर उसे खुदकुशी या गुमशुदगी की तरह दिखाते हैं। बता दें कि हर साल 'लव-रिलेशनशिप' के कारण दसियों हजार जोड़े गायब हो जाते हैं। ये जोड़े गुमनाम कोठरियों में छिपकर 'प्रेम पर माफी' का इंतजार करते होते हैं। या फिर दुनिया को ही अलविदा कह चुके होते हैं, इसकी जानकारी कहीं नहीं मिलती।
कुल मिलाकर, इसकी कोई गारंटी नहीं कि ladakee को अगर 21 साल की मोहलत मिले तो वो अपनी पसंद की दुनिया बना सकेगी। मर्जी से पढ़ाई कर सकेगी। मनमुताबिक करियर बना सकेगी। या मनचाहे आदमी से ब्याह रचा सकेगी। कानून किसी बॉन्ड पेपर पर ये गारंटी भी नहीं देता कि पकी हुई उम्र की ladakee किसी सूने मोड़ पर दबोच नहीं ली जाएगी। गैर-बराबरी की घुन तब भी नई फसल को बर्बाद कर रही होगी।
पुरुषों की ग्रोथ के लिए ladakiyon को कैलोरी समझा जाता है
वैसे शादी की उम्र का अब जाकर समान हो पाना कई सवाल उठा रहा है। ये बात हो रही है कि आखिर क्यों दोनों की उम्र में कानूनी तौर पर भी फासला रखा गया था! इस अंतर की वजह वैज्ञानिक कम, मानसिक ज्यादा है। दरअसल पुरुषों को मजबूती के लिए ज्यादा कैलोरी, ज्यादा प्रोटीन ही काफी नहीं, बल्कि युवा ladakeeya भी उनकी ‘ग्रोथ’ का अहम हिस्सा हैं। कमसिन लड़की,बुढ़ाते पुरुष की नसों में बोटॉक्स का इंजेक्शन बनकर दौड़ती है।
शादीशुदा या प्रेम के रिश्ते में क्यों पुरुष का खाया-अघाया और स्त्री का छुईमुई होना जरूरी है, इसे बताने को वैज्ञानिकों की पूरी बिरादरी जुट गई। जाने-माने साइंस जर्नल डेमोग्राफी में स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर स्वेन ड्रेफल ने उम्र को लेकर कई ‘तयशुदा’ खुलासे किए। उन्होंने बताया कि बड़ी उम्र की औरत से शादी करने पर मर्द की औसत आयु कम हो जाती है।
ये तो हुआ रिसर्च का एक हिस्सा। दूसरा हिस्सा इस तरह से रचा गया, जो वैज्ञानिक कुनबे को इंसाफ-पसंद दिखाने में कोई कसर न रखे। अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के सोशियोलॉजी डिपार्टमेंट ने 2 लाख जोड़ों पर एक स्टडी की। ऑनलाइन डेट करते इन कपल्स पर हुई स्टडी के मुताबिक 50 साल की उम्र में पुरुष अपने साथी को सबसे ज्यादा प्रसन्न रख पाते हैं। वहीं लड़कियों में ये उम्र 18 साल बताई गई।
यानी 30 के फासले के साथ भी पुरुष अपनी साथिन को संतुष्ट रख पाते हैं। जबकि उम्र के चंद दशक पार करते ही स्त्री उस घोड़े की तरह हो जाती है, जिसके पैर टूट गए हों। अब रेस में दौड़ना तो दूर, उसे दुनिया में रखने का भी कोई फायदा नहीं। घोड़ों को गोली मार दी जाती है। स्त्रियों को एक्सपायर्ड घोषित कर दिया जाता है।
जी हां, एक्सपायर्ड! अचार-मुरब्बे, दवाओं और क्रीम-पावडर की ही नहीं, औरतों की भी ‘एक्सपायरी’ डेट होती है। पीरियड्स बंद होने के साथ ही वे एक्सपायर्ड कहलाने लगती हैं। ये औरतें न तो ढंग से प्रेम कर पाती हैं, न ही संतान दे पाती हैं। तो स्त्री देह का सारा नमक ठीक से इस्तेमाल हो सके, इसके लिए उसे कम उम्र में ही शादी कर लेनी चाहिए। ब्याह के बाद जितनी जल्दी हो सके, औलादें दे देनी चाहिए। इसके बाद वो रिटायर होने के लिए आजाद है।
बराबरी के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है
शादीशुदा रिश्ते में उम्र का ये फर्क हमेशा से गैर-बराबरी की मिसाल रहा। 18 साल का होते-होते स्कूल खत्म होता है। जब लड़के अपने दोस्तों के साथ कॉलेज की तैयारी में होते हैं, उनकी हमउम्र की बच्चियां सोनोग्राफी क्लिनिक में होती हैं। जब लड़के करियर बना रहे होते हैं, बच्चियां अपने बच्चों के पोतड़े धो रही होती हैं। अब कानूनी तौर पर उम्र का ये फासला मिट जाएगा, लेकिन यही काफी नहीं। औरत-मर्द को एक जमीन पर लाने के लिए हमें लंबा रास्ता तय करना है।
कुछ ही दिनों में साल 2021 विदा होने वाला है। नए साल के सगुन-भरे पांव दरवाजे पर ठिठके हुए हैं। प्यारी सोसायटी! दरवाजे के पाट चौड़े खोल दो। इन पैरों की छाप को जमीन समेत अपने मन पर भी आने दो। यकीन जानो, ये छाप जितनी गहरी होगी, दुनिया उतनी ही खुशरंग होगी। स्त्री-पुरुष नहीं, बल्कि साथी-साथिनों से जगमगाती।