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TOP 5 पंजाब में पहली बार POLYHEDRA चुनाव


Top 5 पंजाब में पहली बार POLYHEDRA चुनाव:5 मेजर POLITICAL प्लेयर्स में बंटने से गिरेगा कांग्रेस और शिअद का VOTE शेयर, हार-जीत के अंतर पर भी असर


जालंधर

TOP 5 पंजाब में पहली बार POLYHEDRA चुनाव


पंजाब के चुनावी इतिहास में इस बार का विधानसभा ELECTION कुछ अलग है। यह पहली बार है कि देश की राजनीतिक के पांच बड़े प्लेयर्स चुनावी दंगल में डटे हैं, इनमें दो क्षेत्रीय और तीन राष्ट्रीय पॉलिटिकल इम्पोर्टेंस के हैं। इन प्लेयर्स में बंटने के कारण कांग्रेस और अकाली दल का वोट शेयर गिरेगा। साथ ही राज्य में हार-जीत के अंतर पर भी इस POLYHEDRA (बहुकोणीय) मुकाबले का असर दिखेगा।


2017 के विधानसभा चुनावों से पहले पंजाब में कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के बीच ही सीधा मुकाबला होता रहा है। भारतीय जनता पार्टी इस दौरान शिरोमणि अकाली दल की सहयोगी की भूमिका में रही। 2017 के चुनाव में आम आदमी पार्टी की एंट्री के बाद यह रवायत टूट गई। आप ने पंजाब में थर्ड फ्रंट के रूप में प्रवेश किया और अपनी उपस्थिति भी राजनीतिक परिदृश्य में दर्ज करवाई।


2022 में दो नए फ्रंट चुनावी दंगल में उतरे


2022 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस बार किसान आंदोलन के कारण शिरोमणि अकाली दल और भाजपा का गठबंधन टूट चुका है। अकाली दल इस बार बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने भी कैप्टन अमरिंदर सिंह सुखदेव सिंह ढींडसा की शिअद (संयुक्त) के साथ मिलकर अलग फ्रंट के रूप में चुनौती पेश की है। वहीं किसान संगठनों का मोर्चा भी चुनावी दंगल में उतर चुका है।


आम आदमी पार्टी का वोट शेयर बढ़ेगा


आम आदमी पार्टी ने पिछले चुनाव में भी कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के वोट शेयर को प्रभावित किया और 20 सीटें जीती थीं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस बार भी AAP इन दोनों पारंपरिक पार्टियों के वोट शेयर के हिस्से का उपभोग कर सकती है। हालांकि वोटर शेयर में कितनी वृद्धि होगी और उन्हें कितनी सीटों पर जीत मिलेगी यह देखने वाली बात होगी। वहीं, किसानों और कृषि समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाला संयुक्त समाज मोर्चा ने भी एक अलग विकल्प के रूप में खुद को जनता के सामने पेश किया है। इसका भी दोनों पारंपरिक दलों के वोट शेयर पर प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को भी राज्य की 117 विधानसभा सीटों पर जीत की उम्मीद है।


हिंदू वोटों के लिए भाजपा-कांग्रेस में प्रतिस्पर्धा


आंदोलन के दौरान किसानों के कोप का भाजन बनी भारतीय जनता पार्टी के पास पंजाब में खोने के लिए कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी मिलेगा वह पार्टी के लिए प्लस ही जाएगा। पंजाब में अकाली दल से गठजोड़ टूटने के बाद अपनी एंट्री कर रही भाजपा कैप्टन और ढींडसा की पार्टी के साथ गठबंधन कर अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में उसका वोट शेयर बढ़ सकता है। राज्य की आबादी में 38.5 फीसदी हिंदू हैं। भाजपा और कांग्रेस में इस बार हिंदू वोटों के लिए प्रतिस्पर्धा रहेगी।


बिहार और झारखंड में हुआ था बहुकोणीय मुकाबला


बिहार और झारखंड के पिछेल विधानसभा चुनाव के दौरान भी बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिला था। वहीं दक्षिण के राज्यों में भी कई बार बहुकोणीय मुकाबले देखने को मिले हैं। पश्चिम बंगाल के बाद तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है, जहां पर राष्ट्रीय दलों पर क्षेत्रीय दल हावी हैं। भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव में एक सीटी जाती थी और इस बार खाता भी नहीं खोल सकी। कांग्रेस ने डीएमके के साथ गठबंधन कर अपनी साख बचाई।


11 दल बिहार में पिछले चुनाव में थे मैदान में


बिहार में 2020 विधानसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस, भाजपा के अलावा 11 दल मैदान में थे। राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों ने महागठबंधन बनाया। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक दल भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यू) ने मिलकर चुनाव लड़ा।


बहुजन समाज पार्टी, विकासशील इंसान पार्टी, आल इंडिया मजलिस मुसलमीन, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा, लोकजनशक्ति पार्टी इत्यादि भी चुनावी दंगल में थीं। इन दलों में से किसी ने एक तो किसी ने पांच सीटें जीतीं।


मुख्य दलों की बात करें तो 2015 के चुनावों में भाजपा का वोट शेयर 24.42 फीसदी था और 2020 के विधानसभा चुनावों में गिरकर 19.46 प्रतिशत हो गया।


जेडीयू का वोट शेयर 15.39 फीसदी और राजद का 23.11 फीसदी रहा। कांग्रेस का वोट शेयर पिछले चुनाव के मुकाबले 6.6 फीसदी से बढ़कर 9.5 फीसदी हो गया।



बिहार के 2020 विधानसभा चुनावों में दलों का वोट शेयर


झारखंड में BJP का वोट शेयर बढ़ा पर सत्ता से दूरी


2019 के झारखंड चुनाव में भाजपा, झारखंड मुक्ति मोर्चा एवं कांग्रेस गठबंधन, झारखंड विकास मोर्चा के बीच रोचक मुकाबला हुआ। भारतीय जनता पार्टी 15 फीसदी वोट शेयर बढ़ने के बावजूद सत्ता पर काबिज नहीं हो पाई थी। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने वोट शेयर 15 फीसदी कम होने के बावजूद भाजपा से 5 सीटें ज्यादा जीतकर सरकार बनाई। इन चुनावों में भाजपा का वोट शेयर 33.37 फीसदी, कांग्रेस का 13.88 फीसदी और झामुमो का वोट शेयर 18.72 फीसदी रहा था।


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