चीन बांट रहा बच्चे पैदा करने के लिए Loan, क्या भारत को अब भी है जनसंख्या कानून की जरूरत?
कभी वन चाइल्ड पॉलिसी लाने वाले चीन के एक प्रांत ने शादीशुदा जोड़ों को बच्चे पैदा करने के लिए 31 हजार डॉलर (23 लाख रुपये) का 'बेबी loan' देने का ऐलान किया है। चीन में बेबी लोन देने का फैसला दुनिया भर में चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि ये वही देश है जिसने कभी एक बच्चे पैदा करने की नीति लागू की थी। वहीं भारत में भी जनसंख्या वृद्धि दर स्थिर से भी नीचे पहुंच गई है, जिससे अपने यहां भी ये चर्चा शुरू हो गई है कि क्या भारत को भी अब जनसंख्या नियंत्रण की जरूरत नहीं है?
चलिए समझते हैं कि आखिर क्यों चीन में बच्चे पैदा करने के लिए दिया जा रहा है लोन? क्या भारत को अब भी अपनी जनसंख्या पर नियंत्रण करने की जरूरत है या नहीं? जानिए...
चीन का एक प्रांत दे रहा बच्चे पैदा करने के लिए loan
चीन के उत्तरपूर्वी प्रांत जिलिन (Jilin) ने लोगों को शादी करने और बच्चा पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बैंको को 'शादीशुदा जोड़ों के लिए मैरिज एंड बर्थ कंज्यूमर लोन' देने के लिए कहा है। इस बेबी लोन के तहत बच्चा पैदा करने के लिए कपल्स को बैंक 2 लाख युआन (करीब 23 लाख रुपये) तक का लोन मिलेगा।
चीन ने ये योजना जिलिन प्रांत की गिरती हुई जनसंख्या को देखते हुए उठाया है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, वैसे तो पूरा चीन ही गिरती हुई जन्म दर की समस्या से जूझ रहा है, लेकिन चीन के तीन उत्तरपूर्वी प्रांत- जिलिन, लिआओनिंग और हेलिलॉन्गजियांग इस समस्या से सर्वाधिक प्रभावित हैं। 2010 की तुलना में 2020 में इस क्षेत्र की आबादी 10.3 फीसदी कम हुई है। इस दौरान जिलिन की आबादी में तो 12.7% की गिरावट आई है।
चीन क्यों दे रहा जनसंख्या बढ़ाने पर जोर
कभी बढ़ती हुई जनसंख्या से निपटने के लिए वन चाइल्ड पॉलिसी लाने वाला चीन अब जनसंख्या बढ़ाने पर जोर दे रहा है और इसके लिए इसी साल अगस्त में उसने थ्री चाइल्ड पॉलिसी लागू की थी। चीन ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए 1980 में वन चाइल्ड पॉलिसी लागू की थी, जो 2016 तक लागू रही।
फिर तेजी से बूढ़ी होती आबादी से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर के डर से कम्युनिस्ट सरकार ने दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी, लेकिन जब इस पॉलिसी से भी युवाओं की जनसंख्या का अनुपात बेहतर नहीं हुआ तो चीन ने 2021 में तीन बच्चे पैदा करने की इजाजत दे दी।
हालांकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि टू चाइल्ड पॉलिसी की तरह ही थ्री चाइल्ड पॉलिसी से भी बड़ा बदलाव होने की उम्मीद कम ही है।
चीन की आबादी घट रही है और बूढ़ी भी हो रही है
2021 में आए चीन की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, चीन की जन्म दर में लगातार चौथे साल गिरावट दर्ज की गई।
2010 से 2020 के दौरान चीन की जनसंख्या वृद्धि दर 5.34% रही और 2010 के 134 करोड़ से बढ़कर 2020 में आबादी 141.2 करोड़ हो गई।
चीन की जनसंख्या 2010 से 2020 के दौरान सालाना 0.53% की दर से बढ़ी जो 1950 के दशक के बाद से किसी भी दशक की सबसे कम वृद्धि दर है। 2000 से 2010 के दौरान चीन की सालाना जनसंख्या वृद्धि दर 0.57% थी।
2020 में चीन में 1.2 करोड़ बच्चे पैदा हुए, जो 2019 के 1.4 करोड़ बच्चों से 18% कम है।
चीन का टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) 1.3 हो गया है, जो स्थिर जनसंख्या के लिए मानक TFR 2.1 से भी नीचे चला गया है। यानी, अब चीन की जनसंख्या घटने की ओर अग्रसर है।
चीन की वर्किंग जनसंख्या (15 से 59 साल के बीच) अब कुल जनसंख्या का 63.35% या 89.43 करोड़ है। ये संख्या 2010 की तुलना में 6.79% कम है।
60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या कुल आबादी का 18.7% या 26.4 करोड़ हो गई है, जोकि पिछली जनगणना के मुकाबले 5.44 % अधिक है। अगले 10 साल में चीन की करीब एक चौथाई आबादी 65 साल से ज्यादा उम्र की होगी।
UN के मुताबिक, 2030 से चीन की जनसंख्या घटने लगेगी, हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा अगले एक-दो साल में ही होने लगेगा।
2025 तक चीन दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाले देश का तमगा भारत के हाथों गंवा देगा। 2020 में भारत की अनुमानित जनसंख्या 138 करोड़ थी, जो चीन से महज 1.5% कम है।
वर्ल्ड बैंक के अनुसार, 2030-40 तक चीन की जनसंख्या पीक पर होगी, लेकिन उसके बाद इसमें गिरावट आनी शुरू होगी और 2100 तक चीन की आबादी 100 करोड़ रह जाएगी, जो अभी 144 करोड़ है।
क्या भारत को है जनसंख्या नियंत्रण की जरूरत?
चीन के जनसंख्या नियंत्रण कानूनों की असफलता का उदाहरण भारत के संदर्भ में भी सही साबित होने की आंशका जताई जा रही है। हालिया सर्वे दिखाते हैं कि कैसे देश स्थिर जनसंख्या वृद्धि दर की ओर बढ़ चला है और अगर अब भी जनसंख्या नियंत्रण के उपाय जारी रहे तो भारत की जनसंख्या भी तेजी से घट सकती है।
हाल ही में आए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NHFS5) के मुताबिक, भारत का टोटल फर्टिलिटी रेट 2.0 हो गया है। ये पहली बार है जब देश का TFR 2.1 से नीचे चला गया है।
टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) का मतलब होता है कि एक महिला अपने जीवन में औसतन कितने बच्चों को जन्म देती है।
अब देश का TFR 2 हो गया है जो 2015-16 में 2.2 था। यानी अब एक महिला अपनी फर्टिलिटी ऐज यानी बच्चे पैदा करने की उम्र में औसतन 2 बच्चों को जन्म दे रही है, जबकि 2015-16 में एक महिला औसतन 2.2 बच्चों को जन्म दे रही थी।
TFR 2.1 को पॉपुलेशन रिप्लेसमेंट का स्टैंडर्ड लेवल माना जाता है। TFR 2.1 होने का मतलब है कि एक पीढ़ी की रिप्लेसमेंट के लिए पर्याप्त बच्चे पैदा हो रहे हैं।
इसका मतलब है कि अगर लंबे समय तक TFR 2.1 रहे, तो जनसंख्या वृद्धि की दर स्थिर हो जाएगी।
भारत का TFR 2.0 हो गया है, यानी ये पॉपुलेशन रिप्लेसमेंट के स्टैंडर्ड लेवल के लिए जरूरी TFR 2.1 से भी नीचे चला गया है।
इसका मतलब है कि अगर लंबे समय तक भारत का TFR इतना ही बना रहा या इससे भी कम हुआ तो जनसंख्या तेजी से घटना शुरू हो जाएगी।
क्या कानून बनाने से घटने लगेगी देश की आबादी?
भारत में 60 के दशक से ही जनसंख्या नियंत्रण के लिए कदम उठाते हुए फैमिली प्लानिंग की शुरुआत की गई थी। पिछले कई दशकों से सरकारों का जोर हम दो हमारे दो, यानी एक कपल के दो बच्चे पैदा करने की नीति पर रहा है।
भारत की जनसंख्या पर इसका असर भी दिखा है और अब उसकी जनसंख्या स्थिर वृद्धि की ओर बढ़ चली है, लेकिन देश में सरकारों का जोर अब भी सख्त जनसंख्या नियंत्रण नियम लागू करने पर है, जिसमें दो बच्चों से ज्यादा होने पर सरकारी नौकरियों और चुनाव लड़ने पर रोक जैसे नियम लाने पर विचार चल रहा है।
उधर चीन की वन चाइल्ड और टू चाइल्ड पॉलिसी से वहां जनसंख्या घटने का खतरा पैदा हो गया है और उनकी जनसंख्या तेजी से बूढ़ी भी हो रही है, क्योंकि कम बच्चे पैदा होने से युवाओं की आबादी घट रही है।
भारत में भी अगर आने वाले सालों में भी जनसंख्या नियंत्रण पर सख्ती जारी रही तो उसका भी हाल चीन जैसा होने का खतरा पैदा हो जाएगा।
चलिए देखें कि जनसंख्या नियंत्रण पर सख्ती कैसे भारत को मुश्किल में डाल सकती है?
2025 तक भारत के चीन को पीछे छोड़कर सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाने का अनुमान है। 2020 में भारत की आबादी (138 करोड़) चीन से महज 3 करोड़ कम थी।
जुलाई 2020 में आई लेंसेट की एक स्टडी के मुताबिक, 2048 में भारत की आबादी 160 करोड़ हो जाएगी जो कि पीक होगा।
इसके बाद जनसंख्या घट सकती है और साल 2100 तक भारत की आबादी घटकर 109 करोड़ रह जाएगी, जो 2048 की तुलना में 32% कम होगी।
लेंसेट की इस स्टडी के मुताबिक, 2040 तक भारत का TFR 1.2 तक पहुंच जाएगा। यानी, इस दौरान देश की जनसंख्या में तेजी से कमी आएगी। 2021 में भारत का TFR 2.0 हो गया।
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